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रानी ने सोचा क्यों ना इसे घर ले चलूँ , घर वाले भी खाएंगे।

मुकेश को अब स्कूल और घर के बीच किसी प्रकार की गंदगी दिखाई नहीं देती थी। इसे देखकर वह काफी खुश होता था।

उन्होंने देखा बच्चे पीपल के पेड़ के नीचे खेल रहे हैं। वह विषधर को परेशान कर रहे थे। विषधर कुछ नहीं कर रहा है।

(एक) जब तक गाड़ी नहीं चली थी, बलराज जैसे नशे में था। यह शोर-गुल से भरी दुनिया उसे एक निरर्थक तमाशे के समान जान पड़ती थी। प्रकृति उस दिन उग्र रूप धारण किए हुए थी। लाहौर का स्टेशन। रात के साढ़े नौ बजे। कराची एक्सप्रेस जिस प्लेटफ़ार्म पर खड़ी थी, वहाँ चन्द्रगुप्त विद्यालंकार

यह बच्चों के लिए एक गुजराती लोक कथा है।

फिर भी आपने उसको अपने हाथ से बचाया। आप ऐसा क्यों कर रहे थे ?

In love with all factors slow and peaceful, she will generally be located looking for silent corners using a glass of wine in hand. Other enjoys consist of little, inconsequential factors, like neatly tucked-in bedsheets and massive, important items, like whole cheesecakes. She goals of becoming a baker and writing about meals someday.

समष्टि में इनके अर्थ हैं कि तू जीने योग्य है, तू भाग्योंवाली है, पुत्रों को प्यारी है, लंबी उमर तेरे सामने है, तू क्यों मेरे पहिए के नीचे आना चाहती है, बच जा."

Picture: Courtesy Amazon A novel penned by Kashinath Singh, this Hindi fiction e-book was initially revealed in Hindi. Established in the spiritual and cultural hub of Varanasi, the novel supplies a vivid portrayal of the city’s multifaceted lifestyle and its socio-cultural intricacies. Kashinath Singh explores the complexities of town through the lens of its people, capturing the essence of Varanasi’s ancient traditions, religious practices, along with the clash involving modernity and age-previous customs.

उन हिरणियों के पैरों से विशाल को चोट लगी, वह रोने लगा।

अगले दिन दूसरे भाई ने सावित्री को अपने सफ़ेद मैले कपडे धोने के लिए भेजा और जानबूझकर उसे साबुन नहीं दिया। तालाब पर पहुंच कर सावित्री रोने लगी। तभी वहां से एक सारस निकला और रोती हुई सावित्री को देख कर उसकी मदद के लिए रुक गया। सरस कपड़ों पर लोटने लगा जिस से कपडे दूध जैसे सफ़ेद हो गए। सावित्री ख़ुशी ख़ुशी कपडे ले कर घर चली गई।

'ठाकुर का कुआं', 'सवा सेर गेहूँ', 'मोटेराम का सत्याग्रह', जैसी प्रेमचंद की अनेक कहानियों में अंतर्भूत मानवीय संवेदना तथा जाति व्यवस्था read more के प्रति उनका दृष्टिकोण इस कहानी को कालजयी और आधुनिक बनाता है.

बुरे काम का बुरा ही नतीजा होता है बुरे कामों से बचना चाहिए।

मोरल – स्वयं की सतर्कता से बड़ी-बड़ी बीमारियों से बचा जा सकता है।

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